देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य ।
प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य ॥इन्द्रादिकृतदेवीस्तुति, श्रीश्रीदुर्गासप्तशती / श्रीश्रीचण्डी
O Devi ! Thou art the remover of the sufferings of thy supplicants; Thou be gracious to us; O Mother of the World! Thou be propitious to us; O Mother of the universe! Protect the universe; O Devi! Thou art the ruler of all moveable and immovable things.
Indrādikṛtadevīstuti, Śrī Śrī Durgāsaptaśatī / Śrī Śrī Chaṇḍī
हे देवि! तुम शरणागत की पीड़ा दूर करने वाली हो । तुम हम पर प्रसन्न रहो । हे सम्पूर्ण जगत की माता ! तुम प्रसन्न रहो । हे विश्वेश्वरि ! विश्व की रक्षा करो । तुम्हीं चराचर जगत की अधीश्वरी हो, हे देवी !
इन्द्रादिकृतदेवीस्तुति, श्रीश्रीदुर्गासप्तशती / श्रीश्रीचण्डी
হে দেবী, হে শরণাগতের দুঃখবিনাশিনি, তুমি প্রসন্না হও; হে অখিল বিশ্বের জননি, তুমি প্রসন্না হও; হে দেবী, হে বিশ্বেশ্বরি, প্রসন্ন হয়ে জগত পালন কর, কেন না তুমিই চরাচর জগতের ইশ্বরী |
ইন্দ্রাদিকৃতদেবীস্তুতি, শ্রীশ্রীচণ্ডী |